मुंबई संवाददाता चक्रधर मेश्राम दि 7 जुलाई 2021:-
, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था, गुलामों को गुलामी की जंजीरे, खुद तोड़नी पड़ेगी, तुम्हारे मालिक तुम्हारी जंजीरे क्यों तोड़ेंगे, वह ऐसा कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारेंगेॽ अपमानित होकर जिंदा रहना शर्मनाक है। आत्मविश्वास से जीना चाहिए। ऐसा जीना व्यर्थ है, स्वाभिमान से जिंदगी जीने के लिए अनगिनत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कठिनाइयां और संघर्ष के साथ ही शक्ति विश्वास को सम्मान प्राप्त होता है। ऐसे ही कठिनाइयों संघर्ष के साथ जीवन जीने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता आदिवासी समाज के हक एवं अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले जननायक, महान योद्धा, बुद्धिजीवी की यह तस्वीर अस्पताल की है, जहां उन्हें लोहे की जंजीरों में जकड़ कर रखा गया था। उस शख्स की सोमवार को पचासी वर्षीय फादर स्टेन
स्वामी, जो जन अधिकार मानवाधिकार कार्यकर्ता थे, उनका निधन हो गया। उन्हें 2020 में महाराष्ट्र पुलिस ने, प्रधानमंत्री की कथित हत्या की साजिश में अर्बन नक्सली करार देकर गिरफ्तार किया था। वे जेल में थे। उन्हें बांबे हाई कोर्ट ने जमानत नहीं दी थी। उनकी जमानत याचिका न्यायालय में लंबित थी। गंभीर रूप से बीमार एवं कोरोनावायरस से ग्रस्त 85 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी को हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस ने उनके पैरों में लोहे की जंजीर बेड़िया डालकर अस्पताल में भर्ती किया था। जिन का आज निधन हो गया है। उनके निधन पर हाई कोर्ट के जस्टिस एस एस शिंदे और एवं एनजे जामदार ने शोक संदेश में कहा है, उनके निधन के लिए हमें खेद है। यह हमारे लिए बड़ा झटका है। हमने उन्हें उनकी पसंद के अस्पताल में भर्ती कराने का आदेश दिया था, पर आज हमारे पास उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए भी शब्द नहीं है। हम आप, अस्पताल, पूरी कोशिश के बावजूद उन्हें नहीं बचा सके। उनकी मृत्यु मुंबई के होली फैमिली अस्पताल में हुई है। भीमा कोरेगांव अर्बन नक्सली मामले में स्वामी मुंबई के ताजोला जेल में न्यायिक हिरासत में थे। और अस्पताल में उन्हें उनके पैरों में लोहे की जंजीरों में जकड़ कर भर्ती कराया गया था,।, यह तस्वीर ने ही मुझे विचलित कर दिया मेरे दिल को झकझोर कर दिया है। इसलिए उनके दुःखद निधन पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने समाज को आगाह किए जाने के उद्देश्य मैं यह आर्टिकल लिख रहा हूं। जो एक साहित्य दर्पण की तरह है। जो समाज को दिशा देता है। मैं हैरान इस बात से हूं कि, न्यायालय उनके निधन पर शोक व्यक्त कर रहा है उनके पास होने श्रद्धांजलि दिए जाने शब्द नहीं है।इतनी ही उस व्यक्ति के प्रति संवेदना थी तो उस पचासी वर्षीय गंभीर गंभीर बीमारी से ग्रस्त फादर स्टैंड स्वामी को अस्पताल मैं जंजीरों में जकड़ कर कैसे रखा गया था ॽ क्यों मौत के पहले उन्हें जमानत नहीं दी गई थी ॽ न्यायालयआखिर जेल ही क्यों भेजती हैॽ जमानत क्यों नहीं देती ॽ सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के अनुरूप, भीमा कोरेगांव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी कानून की धारा 167 के तहत हाउस अरेस्ट की व्यवस्था पर मजबूत मुहर लगाई है। इसके बावजूद टीएमसी के नेताओं को हिरासत हिरासत मैं लेने के लिए सीबीआई की बेचैनी कानून के लिहाज से खतरनाक है जमानत का फैसला सामान्य तो हाई कोर्ट के एक जज की बेंच द्वारा हो जाता है।
फादर स्टैंड स्वामी के वकील मिहिर देसाई ने उनकी जमानत याचिका पर जल्दी सुनवाई का आग्रह किया था परंतु उनकी गंभीर हालत को देखते हुए सुनवाई न करते हुए उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था पुलिस ने जिस हालत में स्टैंड स्वामी को जंजीरों में जकड़े भर्ती किया था वह बेहद मानवता को शर्मसार करने वाली तस्वीर भयानक दृश्य है 85 वर्ष की उम्र में गंभीर बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति कहीं कैसे भाग सकता था ॽ क्या वह बहुत बड़ा कोई आदतन कुख्यात अपराधी था ॽ नहीं उसके बावजूद पुलिस ने उन्हें जंजीरों में जकड़े अस्पताल में भर्ती किया था। आजादी के 75 साल के लोकतांत्रिक भारत में पुलिस का सिस्टम अभी भी अंग्रेजी हुकूमत की तरह दमनकारी है अंग्रेजों ने पुलिसिया खाकी के डंडे के जोर पर भारत में 200 वर्ष राज किया। आजादी के बाद खाकी ने खादी के साथ हाथ मिला लिया जो अब लोकतंत्र और कानून के शासन के लिए सबसे बड़ा नासूर बन गया है। टीवी मीडिया और राजनीतिक विरोधियों के लिए गिरफ्तारी एक खेल है, लेकिन निरीह आम जनता के लिए गिरफ्तारी जीवन भर का नासूर,, इस समस्या के कई पहलुओं पर विधि आयोग और सुप्रीम कोर्ट ने लाखों पन्ने रन दिए लेकिन अभी तक कोई सुधार नहीं हुआ।पुलिस का मानना है कि गंभीर अपराध के आरोप या शिकायतों पर f.i.r. और उसके बाद गिरफ्तार करना पूरी तरह से कानून सम्मत है। लेकिन राजनेताओं के इशारों पर कार्यवाही या चुप्पी साधने के बढ़ते प्रचलन के बाद कानून की दुहाई का तर्क बेहद बौना और घिनौना नजर आता है। सीआरपीसी के तहत पुलिस के सामने दिए गए बयान की कानूनी अहमियत नहीं है बेवजह और गलत गिरफ्तारी जीवन की स्वतंत्रता के संवैधानिक हक पर सबसे बड़ा और संगठित हमला है। बेल नियम जेल अपवाद सुप्रीम कोर्ट ने 2000 के फैसले में साफ किया है कि जेल भेजने के मामलों में जजों को कानून सम्मत आदेश पारित करना चाहिए 2016 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार गलत गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों से हर्जाना वसूल करने की परिपाटी शुरू करनी चाहिए।बेवजह गिरफ्तारी हो तो सुप्रीम कोर्ट के 1978 के फैसले के अनुसार आरोपी को जेल की बजाय बेल मिलना चाहिए। वर्तमान देश के हालात भयानक है कोरोनावायरस के चलते जेल में लाखों कैदियों को बंद करके रखा गया है। और उसके चलते कई कैदियों की विचाराधीन कैदियों की मौत भी हो गई है।। इसी हालात में स्टेनस्वामी की भी मौत हो गई है। वरिष्ठ पत्रकार फिल्म निर्माता प्रीतीश नंदी के अनुरूप बड़ी संख्या में लोगों को जेल में रखने के कारण हम अपने ही लोगों को बंद रखने के मामले में दुनिया में पांचवें पायदान पर है। आधिकारिक रूप से भारत में 478600 लोग जेल में है। लेकिन हम जानते हैं कि आधिकारिक आंकड़े अक्सर पूरी वास्तविक वास्तविकता नहीं बताते। उदाहरण के लिए चीन में 30लाख उईगर नजरबंदी शिविरों में है। जो कैदियों की सूची में नहीं है। भारत के अपने राज है देश में जो 70% लोग क्षमता से अधिक भरे 1350 जेलों में बंद है।वह वास्तव में दोषी भी सिद्ध नहीं हुऐ है। वह फिलहाल कानूनी रूप से बेकसूर है। और विचाराधीन होकर जेल में है। हां कुछ अंतर दोषी सिद्ध हो जाएंगे, लेकिन अगर पुराने आंकड़ों की माने तो ऐसा एक तिहाई के साथ ही होगा। बाकी घर चले जाएंगे लेकिन जिंदगी भर के कलंक के साथ क्योंकि हम हर जेल जाने वालों को अपराधी मानते हैं। हालांकि उनके साथ अपराधियों से व्यवहार होता है क्योंकि हमारे कम कर्मचारी वाले भरे हुए गंदे जेलों में किसी के पास वास्तविक अपराधियों और विचाराधीन कैदियों के बीच नैतिक अंतर करने का समय नहीं है। क्यों 70% विचाराधीन कैदी जेलों में है इसका जवाब नहीं है ॽ स्पष्ट स्पष्ट है कि बतौर राष्ट्र में लोगों को जेल में डालने में आनंद आता है या कम से कम देश चलाने वालों के साथ तो ऐसा है अक्सर छोटे-मोटे कारणों के लिए जेल में डालते हैं और फिर उन्हें भूल जाते हैं यह आसान है क्योंकि हमारे जेलों में दो तिहाई कैदी दलित, जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों में से है। 19% मुस्लिम है 66% निरक्षर या दसवीं तक पढ़े लिखे हैं ऐसे लोग आसानी से माफ नहीं किये जाते लोग अक्सर जेल में इतने लंबे समय तक रहते हैं जो उस सजा से ज्यादा होता है जो उन्हें समय पर सुनवाई होने और दोषी पाए जाने पर मिलती हमारे देश में जेल सजा के लिए बने हैं सुधार के लिए नहीं न्याय के लिए नहीं यही कारण है कि इस महामारी के बीच उन पर ध्यान देने की जरूरत है यूएस सुप्रीम कोर्ट जज सोनिया सोटोमेयर नेअपने एक फैसले में लिखा ऐसा कहा जाता है कि एक समाज के मूल्य उसके जेलों में बंद कैदियों से जान सकते हैं यह इस महामारी में और सच साबित हो रहा है जहां कहीं भी हर जगह सुरक्षित छोड़ दिए गए। भारत में सुप्रीम कोर्ट ने इसका संज्ञान लिया और कैदियों तथा आगंतुकों के लिए महामारी के दौरान यह सोपी की अनुशंसा की है।पुलिस से अनावश्यक गिरफ्तारियां रोकने और मजिस्ट्रेट से उन मामलों में कैद की अनुमति न देने को कहा है जहां अपराध 7 साल से कम की कैद के साथ सजा योग्य है। महामारी हमारे जेलों को सुधारने और ज्यादा मानवीय बनाने का अवसर है।लोगों को बचकाने कारणों से गिरफ्तार किया जा रहा है सरकार किसी को भी खलनायक बना सकती है जो उसकी बात ना माने उस पर सवाल उठाने वाला देशद्रोही हो जाता है ऐसे माहौल में जेल हमारी राजनीतिक प्रणाली का हिस्सा बन गए हैं। लोगों को बंद कर दो वह खामोश हो जाएंगे वह शर्मिंदा होंगे क्योंकि हमने ऐसी संस्कृति बनाई है कि जो जेल गया उसे अपराधी मान लेते हैं लेकिन अब हम उन्हें महामारी का शिकार न बनने दें। अदालत को कड़ा रुख अपनाने दे, जेलों में भीड़ कम करें। जिन्हें वहां होने की जरूरत नहीं है, उन्हें जमानत पर रिहा करें। जहां संभव हो पैरोल दे।उस समय को जेलों को मानवीय बनाने में इस्तेमाल करें। बेल और जेल नियम क्या बात विषय पर राम मनोहर लोहिया लॉ यूनिवर्सिटी में आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए जस्टिस अतुल श्रीधरन ने कहा है कि अदालत ने दबाव में काम कर रही है कि सामान्य मामलों में भी जमानत नहीं देती एक अपर सत्र न्यायाधीश ने अग्रिम जमानत दी तो जांच बैठा दी गई ऐसा होगा तो उनका आत्मविश्वास कितना कम हो जाएगा जिला कोर्ट को स्वतंत्र नहीं किया दखल बंद नहीं किया गया तो हाईकोर्ट को जिला कोर्ट का काम करना होगा हाई कोर्ट का मुख्य काम अपील सुनना है लेकिन हाईकोर्ट में अधिकांश मामले जमानत के लग रहे हैं। फिटर स्टेन स्वामी के साथ ही उसी भीमा कोरेगांव मामले में सुधा भारद्वाज वरवर राव सहित 15 बुद्धिजीवी मानवाधिकार कार्यकर्ता विगत 2 वर्ष पूर्व से जेल में निर्दोष होने के बावजूद जेल की सलाखों में बंद करके रखा गया है क्या है यह मामला इस पर नजर रखने की अत्यंत आवश्यकता है। भीमा कोरेगांव मामले में रची गई साजिश मानवाधिकार कार्यकर्ताओं बुद्धिजीवियों अंबेडकरवादी विचारधारा को मानने वालों को और 1 नक्सली करार देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कथित हत्या एवं सरकार को उखाड़ फेंकने की झूठी साजिश योजना में सुधा भारद्वाज वरवर राव सहित 15 बुद्धिजीवी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को 2 वर्षों से जेल में बंद कर दिया गया है इस भीमा कोरेगांव हिंसा और अर्बन नक्सल मामले में नया खुलासा हुआ है एनडीटीवी के अनुसार आरोपियों के वकील ने दावा किया है कि आरोपियों में से एक रोना विल्सन के लैपटॉप से बरामद साजिश के मूल खुद उन्होंने लिखे थे। बल्कि इन्हें प्लांट कराया गया था। बचाव पक्ष के वकील मिहिर देसाई के मुताबिक उन्हें कोर्ट के आदेश पर मिले हार्ड डिस्क के क्लोन को अमेरिका के आर्सेनल डिजिटल फॉरेंसिक लैब भेजा गया था। जिसकी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है साइबर एक्सपर्ट अंकुर पुराणिक भी मानते हैं कि ऐसा मुमकिन है उन्होंने एक मेल के जरिए यह थी कल हैकिंग कर या दिखाया अंकुर के मुताबिक इसके लिए जरूरी है कि लैपटॉप चालू हो और इंटरनेट कनेक्शन हो लेकिन इस दौरान जिसका कंप्यूटर है उसे शक भी हो सकता है इसलिए लेकर उसके ही वेब कैमरे और कीपैड की हरकत पर नजर रखते हैं। एक्टिविस्ट स्टेट स्वामी को करीब एक महीने बाद जेल में दिए गए एस्ट्रा और सी पर आर्सेनल रिपोर्ट में यह यह कहा बात यह भी है कि रोना विल्सन के कंप्यूटर में माइक्रोसॉफ्ट वर्ड 2007 लेकिन कथित तौर पर उनके द्वारा लिखे गए कुछ दस्तावेज एस एस
स 2010 और यह मैच 2013 के पीडीएफ फॉर्मेट में थे। आप हायर वर्जन का डॉक्यूमेंट सुबह और वर्जन में क्रिएट कर सकते हैं लेकिन वो वर्जन में हायर वर्जन का डाक्यूमेंट्स क्रिएट नहीं कर सकते हैं मतलब साफ है कि रोना विल्सन के कंप्यूटर में वह लेटर ड्राफ्ट नहीं हुआ। वे प्लांट किए गए थे जाहिर है इस खुलासे से बचाव पक्ष के हाथ बढ़ा पुरूप हाथ लग गया है। इसलिए आप आरोपियों ने बांबे हाई कोर्ट में अपील दायर कर पुरे झूठे मामले को साजिश को ही खारिज करने की अपील की गई हैफॉरेंसिक लैब की इस रिपोर्ट को कानूनी वैधता मिलती है या नहीं लेकिन इतना तो जरूर है कि साजिश की सरकारी कहानी पर सवाल खड़ा हो ही गया है। बुद्धिजीवी समाज सेवकों के खिलाफ पुख्ता सबूतों की बात करने वाले महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र प्रणाली सरकार ने भीमा कोरेगांव में शौर्य दिवस 220 शताब्दी के अवसर पर इतिहास को मिटाने की मंशा से सुनियोजित षड्यंत्र कर आर एस एस के संभाजी भिड़े ने जातीय हिंसा हमले किए थे उनके खिलाफ पुलिस थाने में एफ आई आर दर्ज होने के बावजूद नरेंद्र मोदी का गुरु एवं कट्टर हिंदुत्व का मसीहा होने के कारण आज तक उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया है बल्कि निर्दोष सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता बुद्धिजीवी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कथित हत्या के छोटे साजिश में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया है। जिसमें से आज एक फादर स्टेन स्वामी की मौत हो गई है। मैं उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए क्रांतिकारी जय भीम करता हूं। और अपने समाज को आगाह करता हूं, देख लीजिए इस मंजर को कितना भयानक है, आज उन पर आया है, कल तुम पर आना है। इसलिए संगठित रहो, संगठित संघर्ष करो,, अन्यथा तुम्हें और हमें भी इसी तरह से गुलामी की जंजीरों में जकड़ दिया जाएगा। जुल्म इतना बुरा नहीं, जितनी बुरी तुम्हारी खामोशी है। बोलना सीखो, वरना पिंडिया गूंगी हो जाएगी,, सांसों का रुक जाना ही मृत्यु नहीं है। वह व्यक्ति भी मरा हुआ ही है। जिसने गलत को गलत कहने की हिम्मत खो दी है। इसलिए संगठित संघर्ष करो, अन्याय अत्याचार के खिलाफ, अपनी आवाज बुलंद करो। अन्यथा तुम्हें भी गुलामी की जंजीरों मैं जकड़ेने से कोई रोक नहीं पायेगा।